महादेव को समर्पित बटेश्वर हिन्दू मंदिर

Madhya Pradesh

अगर आपके पास निजी वाहन है या आप पुरे दिन के लिए वाहन किराये पर लेते है तो आपके लिए बटेश्वर हिन्दू मंदिर की यात्रा सुगम हो जाएगी। ग्वालियर से एक घंटे की यात्रा के बाद आप दो सौ मंदिर के उस प्रागण में सवयं को पाते है जो आपको विस्मृत और हैरान कर देगा। सनातन सभ्यता की विशालता और व्यपकता का प्रतिक यह मंदिर हमारे इतिहास के गौरव गाथा की कहानी सुनाता है। यह मंदिर हमारे पूर्वजो के वास्तुशिल्प के प्रति अद्भुत प्रतिभा को हमारे समक्ष रखता है। इस मंदिर की यात्रा से आप सनातन के महान विरासत को करीब से अनुभव कर पाएंगे। ऐसा माना जाता है कि 25 एकड़ के क्षेत्र में भगवान शिव, विष्णु और शक्ति को समर्पित लगभग 200 मंदिर हैं। माना जाता है कि बटेश्वर नाम भगवान शिव के दूसरे नाम भूतेश्वर से लिया गया है। पुरातात्विक खोजों के अनुसार, इन मंदिरों का निर्माण चौथी शताब्दी के आसपास हुआ था। लेकिन कुछ अन्य इतिहासकारों का मानना है कि इनका निर्माण 7वीं और 10वीं शताब्दी के बीच हुआ था। मध्य प्रदेश के पुरातत्व निदेशालय के अनुसार, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के शासनकाल में २०० मंदिरों का यह समूह बनाया गया था। कला इतिहासकार और भारतीय मंदिर वास्तुकला में विशेषज्ञ प्रोफेसर माइकल मीस्टर के अनुसार, ग्वालियर के पास बटेश्वर समूह के प्रारंभिक मंदिर 750 -800 ईसवी के होने की संभावना है। कनिंघम के विवरण के अनुसार एक अभिलेख पर सम्वत् 1107 अंकित था।

माइकल मीस्टर के अनुसार, बटेश्वर स्थल मध्य भारत में "मंडपिका मंदिर" अवधारणा के संकल्पना और निर्माण को दर्शाता है।[7]ये मंदिरों में एक "साधारण स्तम्भ वाली दीवार होती है जो एक व्यापक, समतल -धार वाले शामक के सबसे ऊपर होती है जो प्रवेश द्वार से लेकर पवित्र स्थान ,गर्भ गृह ,के आसपास फैली हुई होती है। केके मुहम्मद ने निर्भय सिंह गुज्जर के बारे में और मंदिर के पुनर्निर्माण में एएसआई के साथ उनके और उनके साथियों के सहयोग के बारे में बात की। गर्ड मेविसेन के अनुसार, बटेश्वर मंदिर परिसर में कई दिलचस्प शिलाखंड हैं, जैसे नवग्रह , कई वैष्णववाद परंपरा के दशावतार (विष्णु के दस अवतार), शक्तिवाद परंपरा से सप्तमातृक (सात माताओं) की प्रदर्शनी ।मेविसेन के अनुसार मंदिर परिसर 600 ईस्वी के बाद के होना चाहिए। साइट पर ब्रह्मवैज्ञानिक विषयों की विविधता बताती है कि बटेश्वर (जिसे बटेसरा भी कहा जाता है) ,कभी ये क्षेत्र मंदिर से संबंधित कला और कलाकारों का केंद्र था।